पुणे विधानसभा क्षेत्रों में पुनर्रचना और राजनीतिक के अबतक के बदलाव और बदलते रुझान

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पुणे। समय-समय पर पुणे के विधानसभा क्षेत्रों की संरचना में बदलाव देखे गए हैं, जो यहां की राजनीति और चुनावी परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। पुणे का भवानी पेठ विधानसभा क्षेत्र, जो शहर के मध्यवर्ती इलाके को कवर करता था, 1967 से 2004 तक राजनीतिक दाव-पेच का केंद्र रहा। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस को यहां से लगातार सफलता मिली। टिकमदास मेमजादे ने इस क्षेत्र से दो बार कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, 1978 में जनता पार्टी के भाई वैद्य ने जीत दर्ज की, जिसके बाद कांग्रेस के अमिनुद्दीन पेनवाले ने एक बार फिर से विजय पाई।

इस क्षेत्र में प्रकाश ढेरे का प्रभुत्व बना रहा, जिन्होंने एक बार निर्दलीय और दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। 1990 के बाद कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती चली गई और 1995 और 1999 में शिवसेना के दीपक पायगुडे ने लगातार दो बार जीत हासिल की। 2004 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की कमल ढोले पाटील की जीत के बाद यह विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व से समाप्त हो गया, और इसका कुछ हिस्सा कसबा पेठ और पुणे कैंटोनमेंट विधानसभा क्षेत्रों में विलीन हो गया।

बोपोडी विधानसभा क्षेत्र 1978 से 2004 तक अस्तित्व में रहा, जिसमें कांग्रेस का दबदबा बना रहा। रामभाऊ मोझे ने 1985 से तीन बार लगातार कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया, जबकि 1999 और 2004 की चुनावों में कांग्रेस के चंद्रकांत छाजेड़ ने जीत हासिल की। इसके बाद यह क्षेत्र भी खत्म हो गया।

मुळशी विधानसभा क्षेत्र, जो 1972 से 2004 तक अस्तित्व में रहा, कांग्रेस का गढ़ था। नामदेवराव मते और विदुला नवले जैसे कद्दावर नेता यहां से चुने गए, जबकि 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस के कुमार गोसावी ने विजय पाई। 2004 में शिवसेना के शरद ढमाले की जीत के बाद यह क्षेत्र भी समाप्त हो गया, और इसका कुछ हिस्सा खड़कवासला तथा भोर विधानसभा क्षेत्र में विलीन हो गया।

शिवाजीनगर विधानसभा क्षेत्र, जो भौगोलिक रूप से बड़ा था, 2009 में विभाजित होकर कोथरुड विधानसभा क्षेत्र बना। शिवाजीनगर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिवसेना के गठबंधन का दबदबा रहा है। भाजपा के अण्णा जोशी और शिवसेना के शशिकांत सुतार दो बार विजयी रहे। वर्तमान में यहां भाजपा का वर्चस्व है, जहां विजय काळे और सिद्धार्थ शिरोळे जैसे नेता जीत दर्ज कर चुके हैं।

कोथरुड क्षेत्र भी भाजपा का गढ़ बन चुका है। पहली चुनाव में शिवसेना के चंद्रकांत मोकाटे, और बाद में भाजपा की मेधा कुलकर्णी और चंद्रकांत पाटील विजयी हुए।

पुणे कैंटोनमेंट और हडपसर विधानसभा क्षेत्र में भी समय-समय पर पुनर्रचना की गई है। हडपसर में शिवसेना, भाजपा, और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का बारी-बारी से वर्चस्व रहा है, जिससे यह क्षेत्र किसी एक पार्टी के वर्चस्व में नहीं है।

पुणे की खड़कवासला और वडगाव शेरी जैसी विधानसभा सीटें 2009 में बनाई गईं, जहां खड़कवासला में भाजपा का दबदबा है, जबकि वडगाव शेरी में मतदाता का रुझान बदलता रहता है।

कुल मिलाकर, पुणे के विधानसभा क्षेत्रों की पुनर्रचना और राजनीतिक बदलाव ने शहर की राजनीति को काफी हद तक प्रभावित किया है। जबकि कोथरुड और पर्वती जैसे कुछ क्षेत्र भाजपा के गढ़ माने जाते हैं, अन्य क्षेत्रों में किसी भी पार्टी के लिए जीत की गारंटी नहीं दी जा सकती।

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