पुणे महापालिका की आर्थिक स्थिति पर राज्य सरकार के निर्णय का असर

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पुणे। पुणे महानगरपालिका के राजस्व का प्रमुख स्रोत संपत्ति कर, निर्माण अनुमति शुल्क और जल कर है। 9,000 करोड़ रुपये के बजट में से 30% यानी लगभग 2,700-2,800 करोड़ रुपये का राजस्व संपत्ति कर से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए संपत्ति कर विभाग ने सक्रियता बढ़ाई है।

महानगरपालिका की सीमा में 32 नए गांवों को शामिल करने का निर्णय राज्य सरकार ने लिया था। इसके तहत नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं जैसे सड़कें, पानी, ठोस कचरा प्रबंधन और सीवरेज की जिम्मेदारी महानगरपालिका पर आ गई। इन गांवों के सर्वांगीण विकास के लिए करोड़ों रुपये का बजट आवंटित किया गया।

हालांकि, राज्य सरकार ने हाल ही में इन गांवों से संपत्ति कर वसूली पर रोक लगा दी है। यह निर्णय विधानसभा चुनाव आचार संहिता से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में लिया गया था। इस फैसले से महापालिका को बड़ा आर्थिक झटका लगा है।

महापालिका ने इस साल के बजट में 2,700 करोड़ रुपये का संपत्ति कर संग्रह लक्ष्य रखा था, जिसमें से अब तक 1,500 करोड़ रुपये एकत्र किए जा चुके हैं। लेकिन नई सीमा में शामिल गांवों से मिलने वाला राजस्व निलंबित होने के कारण अनुमानित आय में भारी कमी आई है।

इसके अलावा, उरुली देवाची और फुरसुंगी गांवों को महानगरपालिका की सीमा से बाहर कर स्वतंत्र नगर परिषद बनाने का निर्णय लिया गया है। इन गांवों से मिलने वाले 250-300 करोड़ रुपये के राजस्व से महापालिका वंचित हो रही है।

राज्य सरकार के इस निर्णय के कारण महानगरपालिका को इन गांवों के विकास के लिए खर्च जारी रखना पड़ रहा है, जबकि राजस्व शून्य है। महापालिका प्रशासन को उम्मीद है कि महायुती सरकार इस मुद्दे पर सकारात्मक निर्णय लेकर महानगरपालिका पर आर्थिक बोझ को कम करेगी।

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